गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

धरती की सैर


चाँद ने बैठे बैठे सोचा,
चलो धरती की सैर कर आयें
थोड़ा मन बहलायें।

चाँद उतरा जमीन पर
पहुँचा एक पेड़ के पास
और बोला
दोस्त चलो हम दोनों
मिल कर धूम मचाएं
झूमें नाचें और गायें।

पेड़ ने दुखी होकर चाँद को देखा
निहारा और फ़िर कराहा
दोस्त तुम ग़लत जगह आए हो
कहाँ की हरियाली
कहाँ की खुशहाली
अब तो बात गुजरने वाली।

यहाँ तो इन्सान
इन्सान को काट रहा है
ज्यादा पाने की लालच में
सब कुछ मिटा रहा है
हमारी जड़ें खोद कर
अपने लिए कब्र बना रहा है।

सुन कर चाँद आहत हुआ
मानो उसको कोई भ्रम हुआ
फ़िर घूमते घामते पहुँचा नदी के पास
कल कल करते नदी झरने तालाब।

वह देखकर हुआ बड़ा प्रसन्न
और बोला
तुम्हारी दुनिया कितनी सुंदर है
झरने तालाब कितने निर्मल हैं।

नदी ने सुनकर
अपना सर उठाया
आँखों से आंसू टपकाया
और बोली ……
तुम्हारी बातें थोथा हैं
ये सिर्फ़ नजरों का धोखा है।

यहाँ तो मनुष्य ने
फ़िर अपना जाल बिछाया
हमारी प्राकृतिक सुन्दरता को
नष्ट कराया
अपने सपनों को साकार
करने के लिए
बहुमंजिली इमारतें और
कारखाने बनवाया
बढ़ती आबादी के लिए
जंगल को सूना करवाया
हरियाली को श्मशान बनाया
सारा जग प्रदूषित करके
अपना ही जीवन नर्क बनाया।

चाँद से रहा न गया
वह बोला —
अच्छा दोस्त चलते हैं
तुम्हारी दुनिया से तो
मेरी दुनिया अच्छी है
जहाँ मनुष्य नहीं है।
००००००००००००
पूनम

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"अच्छा दोस्त चलते हैं
तुम्हारी दुनिया से तो
मेरी दुनिया अच्छी है
जहाँ मनुष्य नहीं है।"
सीख और प्रेरणा से भरी
पोस्ट के लिए बधाई।

admin ने कहा…

मजेदार और शिक्षाप्रद कविता है। बधाई।

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मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्‍य खोजने वाला वैज्ञानिक

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मासूम ख्यालों की ओट में कितने गहरे भावों को उतारा है,
बहुत ही अच्छी रचना.......

Vinay ने कहा…

आदमी और आत्मा की कशमकश ज़ाहिर करती हुई कविता।

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तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शाम

vijay kumar sappatti ने कहा…

poonam ji ,

bahut sundar rachna , man ko choo gayi hai .. bhaav ki abhivyakti ko aapne bahut sundar shabd diye hai ...

badhai

maine bhi kuch naya likha hai . padhiyenga jarur..

विजय
http://poemsofvijay.blogspot.com

Divya Narmada ने कहा…

बहुत सादगी से बहुत प्रभावी बात की है आपने.

मोना परसाई ने कहा…

बढ़ती आबादी के लिए
जंगल को सूना करवाया
हरियाली को श्मशान बनाया
सारा जग प्रदूषित करके
अपना ही जीवन नर्क बनाया।
सरल शब्दों में अपने सार्थक भाव प्रेषित किये है

Kavi Kulwant ने कहा…

Chand ki sair.. bahut khoob...

BrijmohanShrivastava ने कहा…

हमारी जड़ें खोद कर अपने लिए कब्र बना रहा है --बहुत सुंदर शब्दावली /सारा जग दूषित करके अपना ही जीवन नर्क बनाया --गंभीर /क्या बात है -तुम्हारी दुनिया से तो मेरी दुनिया अच्छी है जहाँ मनुष्य नहीं है / मानव की मानवता पर प्रश्न चिन्ह ?

Urmi ने कहा…

जितनी ख़ूबसूरत कविता उतनी ही बढ़िया हर एक चित्र! बहुत खूब!

Priyanka Singh ने कहा…

अच्छा दोस्त चलते हैं
तुम्हारी दुनिया से तो
मेरी दुनिया अच्छी है
जहाँ मनुष्य नहीं है।

bahot sahi kaha.....