सोमवार, 7 सितंबर 2015

लाला जी की पगड़ी

लाला जी की पगड़ी गोल
पगड़ी के अंदर था खोल
पगड़ी में से निकला देखो
रूपया एक पचास पैसा।

हंसने लगे सभी बच्चे
बजा-बजा के ताली
लाला जी की पगड़ी
रहती खाली-खाली।


लाला जी शरम से
हो गये पानी-पानी
कंजूसी की उनकी
खुल गई थी कहानी।
0000000000
पूनम श्रीवास्तव


8 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…


बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..

बेनामी ने कहा…

लाला जी की पगड़ी गोल

रचना दीक्षित ने कहा…

लाला जी की पगड़ी के क्या कहने...

Madhulika Patel ने कहा…

सुंदर रचना ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर बाल रचना ..

Rakesh Kumar ने कहा…

रोचक , सुन्दर प्रस्तुति

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सुन्दर रचना......बहुत बहुत बधाई.....

iBlogger ने कहा…

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